(४)
इस घटना के लगभग एक घंटे बाद, बिट्टन को जब कहीं भी आश्रय न मिला, तब उसने एक बार निर्मला के पास भी जाकर भाग्य की परीक्षा करनी चाही। दरवाज़े पर ही उसे अम्मा जी मिलीं । बिट्टन को देखते ही वे कड़ी ललकार के साथ बोलीं --"कौन है ? बिट्टन ! दूर ! उधर ही रहना, खबरदार जो कहीं देहली के भीतर पैर रक्खा तो !" बिट्टन बाहर ही रुक गई। निर्मला पास पहुँच कर शान्त और कोमल स्वर में यह कहती हुई कि-"बिट्टन! बाहर ही बैठो बहिन; मैं वहीं तुम्हारे पास आती हूँ," देहली से बाहर निकल गई । बिट्टन और निर्मला दोनों बड़ी देर तक लिपटकर रोती रहीं।
निर्मला ने कहा-"तुम्हारी ही तरह मैं भी बिना घर की हूँ बहिन ! यदि इस घर पर मेरा कुछ भी अधिकार होता तो मैं तुम्हें इस कष्ट के समय कहीं भी न जाने देती । क्या करूं, विवश हूँ। किन्तु तुम मेरा यह पत्र लेकर मेरे भाई ललितमोहन के पास जाओ; वे तुम्हारा सब प्रबन्ध कर देंगे। उनका स्थान तो तुम जानती ही हो; पर रात के समय पैदल जाना ठीक नहीं । यह रुपया लो; तांगा कर लेना । ईश्वर पर विश्वास रखना बहिन ! जिसका कोई नहीं होता, उसका साथ परमात्मा देता है।"
निर्मला ने, दस रुपये बिट्टन को दिए; वह पत्र लेकर चली गई। निर्मला घर में आई; एक चटाई डाल कर बाहर बरामदे में ही पड़ रही। सवेरे उसकी आँख उस समय खुली जब रमाकान्त उठ चुके थे और उनकी मां नहा कर पूजा करने की तैयारी कर रही थीं ।
निर्मला नित्य की तरह उठ कर घर का सब काम करने लगी; जैसे शाम की घटना की उसे कुछ याद ही न हो। यदि वह मार खाने के बाद कुछ अधिक बकझक करती या रोती चिल्लाती तो कदाचित् अपनी इस हरक़त पर रमाकान्त जी को इतना पश्चात्ताप न होता, जितना अब हो रहा था। उन्हें बार-बार ऐसा लगता कि जैसे निर्मला ठीक थी और वे भूल पर थे । उनसे ऐसी भूल और कभी न हुई थी। कल न जाने क्यों और कैसे निर्मला पर हाथ चला बैठे थे। उनका व्यवहार उन्हीं को सौ-सौ बिच्छुओं के दंशन की तरह पीड़ा पहुँचा रहा था । वे अवसर ढूँढ़ रहे थे कि कहीं निर्मला उन्हें एकान्त में मिल जाय तो वे पश्चात्ताप के आँसुओं से उसके पैर धो दें, और उससे क्षमा मांग लें। किन्तु निर्मला भी सतर्क थी; वह ऐसा मौका ही न आने देती थी। वह बहुत बच-बच कर घर का काम कर रही थी। उसके चेहरे पर कोई विशेष परिवर्तन न था, न तो यही प्रकट होता था कि खुश है और न ही कि नाराज़ है। हाँ ! उसमें एक ही परिवर्तन था कि अब उसके व्यवहार में हुकूमत की झलक न थी । वह अपने को उन्हीं दो तीन नौकरों में से एक समझती थी, जो घर में काम करने के लिए होते हैं, किन्तु उनका कोई अधिकार नहीं होता ।
Rakash
22-Jan-2022 03:26 PM
Nice
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